सुल्तानपुर-
सुल्तानपुर की आन बान शान रहे मशहूर शायर मजरूह सुल्तानपुरी गुरुवार यानि कल जन्मदिन है। उन्होंने बॉलीवुड में करीब 50 सालों तक अपना योगदान दिया था। 1 अक्टूबर 1919 को जन्मे और उर्दू शायरी में अपना अलग मुकाम हासिल करने वाले मजरूह सुल्तानपुर जिले के कुड़वार थानाक्षेत्र के गंजेहड़ी गांव के रहने वाले थे। 20वीं सदी में मजरूह साहब को उर्दू साहित्य के प्रमुख शायरों में गिना जाता था। अपनी रचनाओं के जरिये उन्होंने देश साहित्य और समाज को एक दिशा देने का प्रयास किया था।
आइये जानते हैं मजरूह सुल्तानपुरी के बारे में कुछ खास बातें
मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म 1 अक्टूबर 1919 को उत्तरप्रदेश में स्थित जिला सुल्तानपुर में हुआ था. इनका असली नाम था “असरार उल हसन खान” मगर दुनिया इन्हें मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से जानती हैं.
मजरूह साहब के पिता एक पुलिस उप-निरीक्षक थे. और उनकी इच्छा थी की अपने बेटे मजरूह सुल्तानपुरी को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाये और वे बहुत आगे बढे.
मजरूह सुल्तानपुरी ने अपनी शिक्षा तकमील उल तीब कॉलेज से ली और यूनानी पद्धति की मेडिकल की परीक्षा उर्तीण की. और इस परीक्षा के बाद एक हकीम के रूप में काम करने लगे..
लेकिन उनका मन तो बचपन से ही कही और लगा था. मजरूह सुल्तानपुरी को शेरो-शायरी से काफी लगाव था. और अक्सर वो मुशायरों में जाया करते थे. और उसका हिस्सा बनते थे. और इसी कारण उन्हें काफी नाम और शोहरत मिलने लगी. और वे अपना सारा ध्यान शेरो-शायरी और मुशायरों में लगाने लगे और इसी कारण उन्होंने मेडिकल की प्रैक्टिस बीच में ही छोड़ दी. बताते चले की इसी दौरान उनकी मुलाकात मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी से होती हैं.. और उसके बाद लगातार मजरूह साहब शायरी की दुनिया में आगे बढ़ते रहे. उन्हें लोगो का काफी प्यार मिलाता रहा. उनके द्वारा लिखी शेरो शायरी लोगो के दिलो को छू जाती थी. और वो मुशायरो की शान बन गए..
सब्बो सिद्धकी इंस्टीट्यूट द्वारा संचालित एक संस्था ने 1945 में एक मुशायरा का कार्यक्रम मुम्बई में रक्खा और इस कार्यक्रम का हिस्सा मजरूह सुल्तान पुरी भी बने. जब उन्होंने अपने शेर मुशायरे में पढ़े तब वही कार्यक्रम में बैठे मशहूर निर्माता ए.आर.कारदार उनकी शायरी सुनकर काफी प्रभावित हुए. और मजरूह साहब से मिले और एक प्रस्ताव रक्खा की आप हमारी फिल्मो के लिए गीत लिखे. मगर मजरूह सुल्तानपुरी से साफ़ मना कर दिया फिल्मों में गीत लिखने से क्युकी वो फिल्मो में गीत लिखना अच्छी बात नहीं मानते थे. इसी कारण ये प्रस्ताव ठुकरा दिया..
पर जिगर मुरादाबादी ने समझाया उन्हें और अपनी सलाह दी की फिल्मो में गीत लिखना कोई बुरी बात नहीं हैं. इससे मिलने वाली धनराशी को अपने परिवार को भेज सकते हैं खर्च के लिए. फिल्मे बुरी नहीं होती इसमे गीत लिखना कोई गलत बात नहीं हैं. जिगर मुरादाबादी की बात को मान कर वो फिल्मो में गीत लिखने के लिए तैयार हो गए. और उनकी मुलाकात जानेमाने संगीतकार नौशाद से हुयी और नौशाद जी ने उन्हें एक धुन सुनाई और उस धुन पर गीत लिखने को कहा..
तब मजरूह सुल्तानपुरी ने अपना पहला फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत की नौशाद की सुनाई हुयी एक धुन से. और लिखा एक गाना जिसके बोल थे कुछ इस तरह “गेसू बिखराए, बादल आए झूम के” इस गीत के बोल सुनकर नौशाद काफी प्रभावित हुए उनसे, और अपनी आने वाली नयी फिल्म “शाहजहां” के लिए गीत लिखने प्रस्ताव रखा.
और यही से शुरू हुआ उनका फ़िल्मी सफ़र का दौर और बन गयी एक मशहूर जोड़ी मजरूह सुल्तानपुरी और संगीतकार नौशाद की. और लगातार एक के बाद एक फिल्मो में गीत लिखते रहे. और सफलता की चोटी पर चढते रहे..