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आखिर थाना प्रभारी ने पहले क्यों कि मांग और बाद में वापस ले ली डिमांड,अवैध शराब कारोबार की तफ्तीश में संग्रामपुर थाना प्रभारी राजीव सिंह का खेल,पहले की धारा बढ़ाने की मांग,बाद में सटीक जवाब नही दे पाए तो वापस ले ली डिमांड,निष्पक्ष जांच की मंशा से अमेठी कोतवाली से हटाई गई थी विवेचना,पर हो रहा घालमेल

*..आखिर थाना प्रभारी ने पहले क्यों कि मांग और बाद में वापस ले ली डिमांड*
*अवैध शराब कारोबार की तफ्तीश में संग्रामपुर थाना प्रभारी राजीव सिंह का खेल*
*पहले की धारा बढ़ाने की मांग,बाद में सटीक जवाब नही दे पाए तो वापस ले ली डिमांड*
*निष्पक्ष जांच की मंशा से अमेठी कोतवाली से हटाई गई थी विवेचना,पर हो रहा घालमेल*

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*रिपोर्ट-अंकुश यादव*
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सुलतानपुर/अमेठी:-षड्यंत्रकारियो का बगैर पता लगाए एवं उससे जुड़े साक्ष्य बगैर जुटाये अवैध शराब कारोबार प्रकरण की तफ्तीश कर रहे थाना प्रभारी संग्रामपुर ने जेल गए आरोपियों के खिलाफ ही षड्यंत्र की धारा बढ़ाने की मांग को लेकर कोर्ट में अर्जी दे दी। लेकिन बढोत्तरी पर सुनवाई के दौरान थाना प्रभारी राजीव सिंह कोई तथ्य ही नहीं पेश कर पाए और खुद ही अपनी अर्जी की मांग के खिलाफ जाते हुए उस पर बल न देने की बात लिख डाली।नतीजतन प्रभारी सीजेएम ने विवेचक की अर्जी को खारिज कर दिया। विवेचक राजीव सिंह की इस सतही तफ्तीश की वजह से पुलिस की कार्यशैली फिर सवालो के घेरे में आ गई है।
मामला अमेठी कोतवाली क्षेत्र के चतुर्भुजपुर गांव से जुड़ा है। जहां के रहने वाले आरोपी शुभम अग्रहरी के यहां बीते दो सितंबर को अवैध शराब कारोबार की सूचना पर अमेठी थाने की पुलिस ने छापेमारी की, जिसमें भारी मात्रा में अवैध शराब एवं अन्य उपकरण बरामद हुए। इस दौरान आरोपियों के जरिये पुलिस पर हमले की भी बात कही गई। मामले में पकड़े गए आरोपी राजेश अग्रहरी, रमेश अग्रहरि निवासीगण महमूदपुर-अमेठी ,अर्जुन निवासी कोहरा- अमेठी, नागेंद्र वर्मा निवासी सांगीपुर- प्रतापगढ़ व शुभम अग्रहरी निवासी चतुर्भुजपुर-अमेठी के खिलाफ अमेठी कोतवाल श्याम सुंदर ने मुकदमा दर्ज कराया। जिसमें आरोपियों के खिलाफ भादवि की धारा 420, 467, 468, 471, 257, 258,272, 307 आबकारी अधिनियम की धारा 60, 72, कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63,ट्रेडमार्क अधिनियम 104 के अंतर्गत अमेठी कोतवाली में मुकदमा दर्ज हुआ। मामले में इन आरोपियों के अलावा अन्य की भी संलिप्तता की बात सामने आई थी,जिसकी तफ्तीश अभी जारी है। इस मामले में पांचों आरोपियों को बीते तीन सितम्बर को ही जेल भेजने की कार्रवाई की गई। इसी मामले की तफ्तीश अमेठी कोतवाली से हटाकर निष्पक्ष जांच को लेकर संग्रामपुर थाना प्रभारी राजीव सिंह को सौंप दी गई। जिनकी तरफ से जेल गए आरोपियों के विरुद्ध भादवि की धारा 120-बी की बढोत्तरी को लेकर उन्हें जेल से तलब करने की मांग की गई। सीजेएम हरीश कुमार ने विवेचक की मांग पर आरोपियों को जेल से तलब भी किया। आरोपियों की तलबी होने पर धारा 120- बी की बढ़ोतरी के मुद्दे पर बहस शुरू हुई तो भादवि की धारा 120-बी की बढ़ोतरी की मांग करने वाले थाना प्रभारी राजीव सिंह न तो षड्यंत्रकारियो के विषय में कोई जानकारी दे पाए और न ही धारा 120-बी धारा बढ़ाने के संबंध में कोई सटीक उत्तर दे पाए। ऐसी तफ्तीश के वजह से कोर्ट का बेवजह समय बर्बाद करने वाले थाना प्रभारी राजीव सिंह को कोर्ट की फटकार भी खानी पड़ी। फिलहाल कोर्ट के सामने कोई सही तथ्य व सबूत न पेश कर पाने के चलते निरुत्तर हुए थाना प्रभारी को अपनी सतही तफ्तीश की वजह से फटकार खाने के बाद अपने ही जरिये पेश की गई अर्जी पर बल न देने की मांग करनी पड़ी। नतीजतन विवेचक के जरिए प्रार्थना पत्र पर बल न देने की मांग करने के चलते प्रभारी सीजेएम सिद्धार्थ वर्मा ने उसे खारिज कर दिया। ऐसे में निष्पक्ष तफ्तीश की मंशा से संग्रामपुर थाना प्रभारी को दी गई इस अवैध शराब कारोबार की विवेचना में सतही तफ्तीश की वजह से पुलिस विभाग को फिर मुंह की खानी पड़ी। माना जा रहा है कि विवेचक इस अवैध शराब कारोबार में लिप्त अन्य लोगो का नाम ही सामने नही लाना चाहते है और जेल गये आरोपियों पर ही सारी कार्यवाही कर विवेचना खत्म कर देना चाहते है,शायद इसी का परिणाम है कि एक माह की तफ्तीश के बाद भी विवेचक तफ्तीश में कोई अन्य सबूत जुटा नही पाये और न ही अन्य आरोपियों का कोई सुराग लगा पाये। ऐसे में सवाल उठता है कि पुलिस विभाग के उच्चाधिकारी जिन जांच अधिकारियों पर भरोसा करके उन्हें तफ्तीश थमा देते हैं, उन्हें विवेचना के बारे में एबीसीडी पता ही नहीं रहती या फिर वह सेटिंग-गेटिंग के कामो के आगे ऐसे कार्यो को गम्भीरता से लेते ही नही। आखिर ऐसे में वह कैसे थाना चला रहे हैं और कैसे अन्य मामलों में कार्यवाही कर रहे हैं यह अहम सवाल है। उन्हीं के भरोसे ही लाखों की आबादी की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी थमा दी गई है और अपने थाना क्षेत्र में अपराधियों पर नियंत्रण रखने और लॉ एण्ड आर्डर को मेन-टेन करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी उन्हें ही मिली है। तो आखिर कैसे निभाते होंगे ऐसे अनुभवहीन थाना प्रभारी अपनी जिम्मेदारी। शायद इसी का नतीजा है कि ऐसे अनुभवहीन पुलिस अधिकारी सेटिंग-गेटिंग के बल पर महत्वपूर्ण पद पर अपनी तैनाती कराकर मनमानी तफ्तीश व अन्य मनमाने कार्यो को अंजाम दिला रहे है। उच्चाधिकारियों के जरिये ऐसे अनुभवहीन पुलिस अधिकारियों की गलतियों को नजरअंदाज करने की वजह से ही वह अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश भी नहीं करते। फिलहाल यूपी पुलिस राम भरोसे चल रही है इनका तो कोई जवाब ही नहीं।

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