दरअसल ये मामला है सुल्तानपुर नगर के तिकोनिया पार्क का। इसी तिकोनिया पार्क के बगल तुलसी सत्संग भवन में दशकों पुराना मौनी मंदिर है। मंदिर परिसर में व्यवसायिक दुकाने और कमरे बने हुये हैं जिसमें लोग दशको से रह रहे थे। लेकिन करोड़ों की बेशकीमती जमीन देखकर तुलसी सत्संग भवन के ट्रस्टियों की नीयत डोल गई। फरवरी माह में दुकानों को जीर्ण शीर्ण बताकर खाली कराया जाने लगा। कुछ लोगों को दोबारा बसाने का आश्वासन दिया गया, लेकिन जिन लोगों ने पेशगी देने से इनकार कर दिया गया उन्हें जबरन हटाने की बात सामने आई। लिहाजा वहाँ रह रहे दुकानदारों और किरायेदारों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया था। कुछ लोगों ने न्यायालय का सहारा भी लिया। जहां कोर्ट ने सुनवाई करते हुये स्थगन आदेश दे दिया और वहां यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए। लेकिन इसके बाद भी वहां कार्य निरंतर चलता रहा। मौनी मंदिर में जहां दो मंजिला दुकाने और कमरे थे उसे नेस्तोनाबूत कर दिया गया। साथ ही नया निर्माण शुरू करवाया जाने लगा। हैरानी की बात तो ये रही कि प्रशासन और पुलिस भी इससे अपने को अंजान दिखाते रहे। नजूल या खतौनी की जमीन पर बिना स्वीकृत नक्शे के कोई भी आम आदमी एक ईंट रख दे तो यही अधिकारी उसका जीना मुहाल कर दें, लेकिन मामला सत्ताधीशो से जुड़ा था लिहाजा कोई झांकने तक नहीं गया। इसी के चलते रवींद्र प्रताप सिंह समेत कुछ लोगों ने हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। जहां सुनवाई करते हुये न्यायधीश ने जिलाधिकारी सुल्तानपुर को निर्देशित किया तो एक बार फिर हड़कम्प मच गया। आनन फानन एसडीएम सदर की अगुवाई में तमाम अधिकारी और पुलिसकर्मी मौनी मन्दिर परिसर पहुंचे और निर्माण कार्य रुकवा दिया।