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हाईकोर्ट ने हत्या के केस में विवेचक व सीओ को किया तलब तो खुल गई धाराओं में खेल की पोल।अखण्डनगर थाने के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक बीएस यादव ने उच्चाधिकारियों की सह से खेला था सेक्शन-गेम।करीब पांच माह पूर्व हत्या व लूट के केस में आरोपी सुजीत व विवेक के खिलाफ मात्र भादवि की धारा-34 व 120 बी में दाखिल कर दी थी चार्जशीट।विवेचक से लेकर अन्य जिम्मेदार अफसर आंख मूंद कर करते रहे काम,हाईकोर्ट ने पकड़ी गलती,लिया संज्ञान।हाईकोर्ट के कड़े रुख पर एसपी व कोर्ट से अनुमति लेकर मात्र कुछ दिनों में अग्रिम तफ़्तीश पूरी कर हत्या व लूट सहित अन्य धाराओ में दाखिल की गई चार्जशीट।हाईकोर्ट ने विवेचक व सीओ को तलब कर शपथ पत्र के साथ मांगा है जवाब,17 नवम्बर को है पेशी।अखण्डनगर थाना क्षेत्र के बरामदपुर निवासी शिवनारायण यादव की हत्या के केस में धाराओं के खेल का मामला

*हाईकोर्ट ने हत्या के केस में विवेचक व सीओ को किया तलब तो खुल गई धाराओं में खेल की पोल*

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*अखण्डनगर थाने के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक बीएस यादव ने उच्चाधिकारियों की सह से खेला था सेक्शन-गेम*

*करीब पांच माह पूर्व हत्या व लूट के केस में आरोपी सुजीत व विवेक के खिलाफ मात्र भादवि की धारा-34 व 120 बी में दाखिल कर दी थी चार्जशीट*

*विवेचक से लेकर अन्य जिम्मेदार अफसर आंख मूंद कर करते रहे काम,हाईकोर्ट ने पकड़ी गलती,लिया संज्ञान*

*हाईकोर्ट के कड़े रुख पर एसपी व कोर्ट से अनुमति लेकर मात्र कुछ दिनों में अग्रिम तफ़्तीश पूरी कर हत्या व लूट सहित अन्य धाराओ में दाखिल की गई चार्जशीट*

*हाईकोर्ट ने विवेचक व सीओ को तलब कर शपथ पत्र के साथ मांगा है जवाब,17 नवम्बर को है पेशी*

*अखण्डनगर थाना क्षेत्र के बरामदपुर निवासी शिवनारायण यादव की हत्या के केस में धाराओं के खेल का मामला*

*रिपोर्ट-अंकुश यादव*
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सुलतानपुर। हत्या के केस में अखंडनगर थाने के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक एवं अन्य जिम्मेदारों के जरिए धाराओं में हुए खेल को नजरअंदाज किया गया। मामला कई अधिकारियों की निगाहो के सामने से गुजरा, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी आंख मूंद कर सब कुछ करते चले गये नतीजतन सब पार होता गया और कई महीने बीत भी गये,लेकिन किसी भी जिम्मेदार अधिकारी ने इस गलती पर ध्यान नहीं दिया। फिलहाल हाईकोर्ट ने यह गलती पकड़ ली और गलत धाराएं लगाने पर संज्ञान लेते हुए विवेचना अधिकारी एवं संबंधित क्षेत्राधिकारी को व्यक्तिगत रूप से तलब होने का आदेश देते हुए शपथ पत्र के साथ जवाब मांगा। हाईकोर्ट के सख्त रुख पर हरकत में आए तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक व अन्य जिम्मेदार पुलिस अफसरों के जरिये सारी प्रक्रिया मात्र कुछ दिनों में ही पूरी कर आरोपियों के विरुद्ध हत्या समेत अन्य धाराओं में आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया। इस मामले में पुलिस अधिकारियों की बड़ी कमी देखने को मिली है।

मामला अखंडनगर थाना क्षेत्र के बरामदपुर गांव से जुड़ा है। जहाँ के रहने वाले शिवनारायण यादव उर्फ मनीराम 31 अक्टूबर 2019 की शाम को निमंत्रण देकर वापस घर आ रहे थे, रास्ते में शौच के लिए वह रुक गए। इसी दौरान बाइक सवार बदमाशों ने उन्हें गोली मार कर घायल कर दिया और उनकी मोबाइल भी छीन लिया। वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी फरार हो गए। घायल अवस्था में शिवनारायण को इलाज के लिए ले जाया गया, जिनकी ट्रामा सेंटर-लखनऊ में इलाज के दौरान मौत हो गई। इस मामले में मृतक के भतीजे रामप्रसाद यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के विरुद्ध हत्या के प्रयास में मुकदमा दर्ज हुआ। इलाज के दौरान शिवनारायण की मृत्यु के बाद भादवि की धारा-302 की बढ़ोतरी करते हुए पुलिस ने अपनी जांच शुरू की। तफ्तीश के दौरान आरोपी विवेक सिंह,सुरजीत सिंह उर्फ सुजीत, शिवम सिंह, शुभम सिंह निवासी गण बाँधगांव थाना सरपतहा, जिला जौनपुर एवं विश्वनारायण पाठक उर्फ मोनू निवासी पठकौली थाना सरपतहा, जिला जौनपुर का नाम प्रकाश में आया। प्रकरण की तफ्तीश कर रहे तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक बेचू सिंह यादव ने आरोपी विश्व नारायण पाठक,शिवम सिंह व शुभम सिंह के खिलाफ हत्या व लूट समेत अन्य धाराओं में आरोप पत्र दाखिल किया और अन्य आरोपियों के प्रति विवेचना प्रचलित दिखाई। कुछ दिनों के बाद आरोपी विवेक सिंह के खिलाफ भी आरोप पत्र दाखिल किया गया, लेकिन उसके खिलाफ हत्या व लूट की धारा नहीं लगाई गई, बल्कि मात्र भादवि की धारा 34 व 120 बी में आरोप पत्र दाखिल किया गया। इसके अलावा बेचू सिंह यादव ने सुजीत उर्फ सुरजीत सिंह के साथ भी यह सूत्र अपनाते हुए मात्र भादवि की धारा 34 व 120 बी में आरोप पत्र दाखिल किया और उन्हें भादवि की धारा-302 व 394 से बचाए रखा। जिम्मेदार पुलिस अफसरों की सह से धाराओं में खेल कर करीब पांच माह पूर्व मात्र हल्की धाराओं में दोनों आरोपियों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया गया था, इसी मामले में सुरजीत सिंह को सेशन कोर्ट से जमानत में राहत नहीं मिली तो उसकी ओर से हाईकोर्ट में जमानत याचिका प्रस्तुत की गई। जिस पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पुलिस के जरिये तैयार अभिलेख देखे तो हाईकोर्ट भी पुलिस की यह करतूत देखकर दंग रह गई। आरोपी सुरजीत सिंह की जमानत पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की बेंच ने हत्या व लूट की मुख्य धाराओं से आरोपी सुरजीत सिंह का नाम हटाकर मात्र दूसरी धाराओं पर आधारित धारा-34 व 120 बी में आरोप पत्र दाखिल करने पर कड़ा रुख अपनाते हुए यह जवाब मांगा कि आखिर कैसे आरोपियों के विरुद्ध इन धाराओं में आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया। हाईकोर्ट ने मामले में विवेचनाधिकारी एवं संबंधित क्षेत्राधिकारी को गलत ढंग से दाखिल किए गए चार्जशीट की वजह के संबंध में व्यक्तिगत रूप से शपथ पत्र के साथ तलब होने का आदेश देते हुए जवाब मांगा। हाईकोर्ट ने यह आदेश बीते दो नवम्बर को पारित किया और सुनवाई के लिए 17 नवम्बर की तारीख तय की थी। जिसके बाद हरकत में आए तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक बेचू सिंह यादव जिन्हें मौजूदा समय में जयसिंहपुर का कोतवाल बनाया गया है, उन्होंने हाईकोर्ट के कड़े रुख पर अपने जरिये किए गए धाराओं में खेल को सुधारने के लिए एसपी से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-173(8) के अंतर्गत अग्रिम विवेचना की मांग की। जिस पर एसपी के जरिये बिना किसी देरी के मौजूदा अखंडनगर थाने के प्रभारी निरीक्षक संजय सिंह को कोर्ट से अनुमति लेकर अग्रिम विवेचना के लिए निर्देशित किया गया। एसपी के निर्देश पर वर्तमान अखण्ड नगर प्रभारी निरीक्षक संजय सिंह ने तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक बेचू सिंह यादव के जरिए किए गए खेल में सुधार के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दी। कोर्ट ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए अग्रिम विवेचना की अनुमति देना उचित मानते हुए आदेशित किया। कोर्ट के आदेश के क्रम में प्रभारी निरीक्षक संजय सिंह ने सुरजीत सिंह व विवेक सिंह के प्रति हुए धाराओं में खेल में सुधार कर मात्र कुछ ही समय में तफ्तीश पूरी कर दी और दोनों आरोपियों के विरुद्ध भादवि की धारा 34 व 120 बी के अलावा 302 व 394 में भी आरोपपत्र सीजेएम कोर्ट में दाखिल कर दिया। जिस पर सीजेएम कोर्ट ने बीते 13 नवम्बर को संज्ञान लिया। हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई के लिए 17 नवम्बर यानी मंगलवार का दिन तय किया है,जिसमें जांच अधिकारी एवं सम्बंधित सीओ को तलब होने का आदेश भी दिया है। फिलहाल पुलिस विभाग के जिम्मेदार अफसर गंभीर धाराओं में हुए इस खेल को त्रुटिवश होना जाहिर कर रहे हैं,जिस पर हाईकोर्ट ने संज्ञान न लिया होता तो शायद जिम्मेदार पुलिस अफसरों को इस गलती को कोई भी न कभी देखता,न इसमें सुधार की कभी जरूरत पड़ती और पुलिस विभाग की इस कमी का फायदा जरूर ही मुलजिम को मिलता। ऐसे में हत्या से जुड़े गंभीर अपराध में जो खेल पुलिस के जरिए खेला गया, यह कहीं न कहीं बहुत ही गंभीर विषय है। जिसको लेकर माना जा रहा है कि तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक ने अपने विभाग के उच्चाधिकारियों की सह से धाराओं का यह खेल अनजाने में नही बल्कि जानबूझकर किसी लाभवश खेला, नहीं तो शायद ऐसा मुमकिन नही था कि इतना लापरवाही भरा खेल सभी जिम्मेदार अधिकारियों की नजर से बचता चला गया और किसी की निगाह इस गलती पर नहीं गई। लेकिन हाईकोर्ट ने मामले में संज्ञान लेते हुए पुलिस की करतूत का भंडाफोड़ कर दिया, जिसके बाद मात्र कुछ ही दिनों में सारी कार्रवाई पूरी कर ली गई। ऐसे में सवाल उठता है कि कागजी कोरम पूरा कर पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों ने खानापूर्ति तो कर ली, लेकिन इस गंभीर मामले में आखिर गलती कैसे हो गई और इसका जिम्मेदार कौन है, इसके लिए जिम्मेदार अफसर क्या एक्शन लेते है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा ?

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