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मर्डर केस में सुप्रीम कोर्ट से सजा बहाली के बाद भी जिन फरार दोषियों को 13 साल तक पुलिस से मिलता रहा संरक्षण,एडीजे पीके जयंत की कोर्ट सख्त हुई तो तीन में से दो ने हफ्ते भर में ही कर दिया सरेंडर

*मर्डर केस में सुप्रीम कोर्ट से सजा बहाली के बाद भी जिन फरार दोषियों को 13 साल तक पुलिस से मिलता रहा संरक्षण,एडीजे पीके जयंत की कोर्ट सख्त हुई तो तीन में से दो ने हफ्ते भर में ही कर दिया सरेंडर*

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*तेरह वर्षो के बीच कई जजों और जिम्मेदार पुलिस अफसरों के बीच लिखा जाता रहा बस लेटर पर लेटर,सेशन जज पीके जयंत ने ऐसे कसा शिकंजा कि हरकत में आ गये सभी जमानतदार,दोषी और पुलिस अफसर*

*सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष- 2009 में मर्डर केस में चार सगे भाइयों समेत पांच की सजा की थी बहाल,दो भाई चले गये थे जेल,भाई शोभनाथ व विजयपाल मिश्रा और भतीजा हंसराज हो गये थे फरार,सेशन कोर्ट को जेल भिजवाने की मिली है जिम्मेदारी*

*अमेठी पुलिस,डीजीपी व प्रमुख सचिव गृह के सारे तंत्र फरार चल रहे दोषियों की गिरफ्तारी कराने में रहे फेल,13 साल में एक भी नहीं लगे उनके हाथ,महज कागजी खानापूर्ति कर देते रहे संरक्षण,जैसे कोर्ट सख्त हुई होने लगा सरेंडर*

*करीब 40 वर्ष पूर्व गौरीगंज थाना क्षेत्र में हुई थी रामअभिलाख द्विवेदी की हत्या,उसके बेटे पारसनाथ को भी 1994 में जमानत पर रिहा दोषियों ने उतार दिया था मौत के घाट*

*रिपोर्ट-अंकुश यादव*
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सुल्तानपुर/दिल्ली। देश की सबसे बड़ी अदालत से मर्डर केस में सजा बहाली के तेरह साल बाद भी दो सगे भाई व भतीजा जेल की सलाखों से बचे रहे। सजा बहाली का आदेश आने से अब तक के बीच कई जज और कई पुलिस अफसर आये और गये, पर किसी की भी कार्यवाही का कोई भी असर फरार चल रहे दोषियो पर नहीं दिखा। लेकिन कुछ दिनों पहले ही इस केस की सुनवाई की जिम्मेदारी एडीजे पीके जयंत को मिली,जिनके कार्य करने का अंदाज ही कुछ अलग है और लापरवाह पुलिस अफसरों व अपराधियो में उनकी कार्यशैली की एक अलग दहशत है। जिसका नतीजा ही है कि उन्होंने ऐसी सख्ती बरती कि वर्षों से थमी हुई कार्यवाही का पहिया चल पड़ा और हरकत में आये दो दोषियो ने हफ्ते भर में ही सरेंडर कर दिया। अब मात्र एक दोषी शोभनाथ को ही जेल की सलाखों के पीछे जाना शेष रहा गया है। जिसकी गिरफ्तारी व अन्य कार्यवाहियों को लेकर कोर्ट ने सम्बंधित अधिकारियो को कड़ा आदेश जारी किया है।
मामला गौरीगंज थाना क्षेत्र स्थित सरैया मानकचंद मजरे कटरा गांव से जुड़ा है। जहां के रहने वाले राम अभिलाख द्विवेदी की दो नवम्बर 1981 की शाम धारदार हथियार व लाठी-डंडो से हमलाकर आरोपियों ने हत्या कर दी थी। मामले में मृतक के पुत्र पारसनाथ द्विवेदी की तहरीर पर गांव निवासी शोभनाथ,विजयपाल,त्रिवेणी प्रसाद,दूधनाथ पुत्रगण रामकुमार व हंसराज पुत्र दूधनाथ के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ और आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल हुई। मामले का विचारण जिला न्यायालय सुलतानपुर में चला। जहां पर विचारण पूर्ण होने के पश्चात 16 अगस्त 1984 को सेशन कोर्ट ने सभी आरोपियों को हत्या सहित अन्य धाराओं में दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सेशन कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध दोषियों ने हाईकोर्ट में अपील की। अपील लम्बित रहने के दौरान दोष सिद्ध सभी अभियुक्त हाईकोर्ट के आदेश पर जमानत पर रिहा हुए। जमानत पर रिहा होने के बाद दूधनाथ मिश्र,विजयपाल व हंसराज ने अपने व अन्य दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराकर सजा के अंजाम तक पहुँचाने वाले पारसनाथ द्विवेदी की भी दो मई 1994 को हत्या कर दी। जिसके बाद जमानत पर रिहा दोषसिद्ध अभियुक्तो की जमानत निरस्त करने की कार्यवाही हुई तो उनकी जमानत निरस्त हो गई। फिलहाल हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट के फैसले को गलत ठहराते हुए उन्हें सात अप्रैल वर्ष 2000 को दोषमुक्त करार दे दिया। हाईकोर्ट के जरिए दोषमुक्त किये जाने संबंधी फैसले को अभियोजन पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। जिस पर सुनवाई के उपरांत सुप्रीम कोर्ट ने आठ मई 2009 को सेशन कोर्ट के फैसले को जायज ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा बहाल कर दोषियों को दंडित किये जाने का फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में दोष सिद्ध त्रिवेणी प्रसाद व दूधनाथ को जेल भेजने की कार्रवाई की गयी, लेकिन दोष सिद्ध ठहराये जाने के बाद भी शोभनाथ,विजयपाल व हंसराज जेल की सलाखों के पीछे जाने से भागते रहे। सुप्रीम कोर्ट से हुई सजा बहाली के आदेश का अनुपालन कराकर फरार चल रहे दोषियों को जेल भिजवाने की जिम्मेदारी सेशन कोर्ट को मिली। मृतक रामअभिलाख द्विवेदी के नाती पवन कुमार दूबे ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन कराने को लेकर कई वर्षो पूर्व अर्जी दी। सजा बहाली का आदेश हुए धीरे-धीरे तेरह साल बीत गये ,पर फरार चल रहे दोषियों ने शीर्ष अदालत से सजा बहाल होने के बाद भी जेल से कभी बाहर न निकल पाने की डर की वजह से अब तक कोर्ट के आदेश का अनुपालन ही नहीं किया। इन तीनो ने कभी भी न तो सरेंडर करना मुनासिब समझा और न ही इन्हें उत्तर प्रदेश की पुलिस कभी पकड़ पाई। तेरह साल के बीच कई सेशन जजों ने प्रमुख सचिव गृह व डीजीपी समेत अन्य को पत्र भेजा,लेकिन यूपी पुलिस पर कोई फर्क नहीं पड़ा, नतीजतन दोषसिद्ध होने के बाद भी तीनो लोग सजा से बचे रहे। फिलहाल मौजूदा समय मे इस केस की सुनवाई अत्यंत सख्त माने जाने वाले अपर सत्र न्यायाधीश/ सेशन जज एमपी-एमएलए कोर्ट पीके जयंत की अदालत में चल रही है,जिनकी कार्यशैली से बड़े-बड़े लापरवाह पुलिस अफसर व बड़े से बड़े अपराधी उनकी कोर्ट की सख्ती से कांपते रहते है। जज पीके जयंत की अदालत से फरार चल रहे दोषियों की गिरफ्तारी व कुर्की की कार्यवाही का आदेश जारी करने के साथ-साथ जमानतदारो पर भी शिकंजा कसा गया एवं पुलिस अफसरों पर भी कोर्ट का कड़ा रुख रहा। इसी सख्ती का नतीजा रहा कि तेरह वर्षो से जिन दोषियों को उत्तर प्रदेश की पुलिस व बनी तमाम जांच एजेंसियां पकड़ पाने व उनका कोई सुराग लगा पाने में नाकामयाब रही ,उनमे से दोषी विजयपाल मिश्रा ने अभी हाल में ही स्वयं कोर्ट में सरेंडर कर दिया था। इतने वर्षो से फरार चल रहे दोषी विजयपाल ने अब तक सरेंडर न करने के पीछे आध्यात्मिक उत्थान को लेकर बाहर रहने की वजह बताई थी। अब उसके बाद हरकत में आये उसके भतीजे हंसराज ने भी कोर्ट में सरेंडर कर दिया। हंसराज ने इतने वर्षों तक फरार रहने के पीछे जीवन व्यापन को लेकर परिवार से दूर होकर शहर चले जाने के कारण सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी ही अब तक न हो पाने की वजह बताई है। कोर्ट ने सरेंडर कर जेल गये दोनो दोषियो की सही शिनाख्त कर कोर्ट को अवगत कराने के लिए गौरीगंज कोतवाल को आदेशित किया है। वहीं अदालत ने अभी भी फरार चल रहे दोषी शोभनाथ की गिरफ्तारी व कुर्की समेत अन्य कार्यवाहियों को लेकर सम्बन्धित अधिकारियों को पत्र जारी किया है। उम्मीद है कि कोर्ट की सख्ती पर कई वर्षों से छिपकर बैठा दोषी शोभनाथ भी जल्द ही जेल की सलाखों में होगा।

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