सुल्तानपुर के. एन. आई. पी. एस. एस. के कृषि संकाय में ” तिलहन व गन्ने में लगने वाले कीटों व उनके प्रबंधन ” विषय पर अध्ययन गोष्ठी (सेमिनार) का आयोजन किया गया। जिसमें संकाय के स्नातक तृतीय वर्ष की छात्रा कु. अकांशा सिंह ने तिलहन व कु. आयुषी तिवारी ने गन्ने में लगने वाले कीटों एवं रोग व उनके प्रबंधन पर व्याख्यान दिया।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे कीट विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. नवीन विक्रम सिंह ने कहा कि सरसों में माहू का हमला होता है। यह कीट हल्के स्लेटी रंग का होता है। सरसों की पौध में यह कोमल तनों, पत्तियों, फूलों व नई फलियों को नुकसान पहुँचाता है। उसके रस को चूसकर उसे बेजान कर देता है। इस दौरान कीट के प्रकोप से पत्तियां काले कवक का शिकार हो जाती हैं। यह कीट फरवरी व मार्च माह में अपना असर दिखता है। माहू कीट से सरसो की फसल को बचाने के लिए पहले संक्रमित पौधे को अलग कर दें। अधिक मात्रा में कीटों का हमला हो तो डाईमिथोएट या मोनोक्रोटोफास की एक लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। पुनः कीट का प्रकोप होने पर 15 दिन में फिर से छिड़काव करें।
उद्यान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. शशांक सिंह ने गन्ने लगने वाले लाल सड़न रोग के बारे में बताया। जिसे गन्ने का कैंसर भी कहते हैं। यह फफूंदी जनित रोग है। जिसकी पहचान गन्ना जमाव के बाद अप्रैल – जुलाई माह के आसपास रोग के लक्षण पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इससे बचने के लिए एक खेत में लगातार गन्ना फसल की बुआई करने अपेक्षा फसल चक्र सहयोगी खेती तथा हरी खाद की फसलों को उगाते रहना चाहिए।
कीट विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. बाल मुकुंद पाण्डेय ने गन्ने में लगने वाले प्रमुख कीट तथा उनके जैविक प्रबंधन के बारे में विस्तृत रूप से बताया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के. एन. जी. आई. के महानिदेशक डॉ. एस. डी. शर्मा ने कहा कि वर्तमान परिवेश में रसायन का कम से कम उपयोग कर जैविक नियंत्रण/प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाए।
उक्त कार्यक्रम में संकाय के विभागाध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार वर्मा, शस्य विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. अभिनव कुमार सिंह, कृषि अर्थशास्त्र के डॉ. नरेंद्र कुमार गुप्ता इत्यादि उपस्थित रहे।