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प्लाई वुड फैक्ट्री के मुंशी की हत्या के केस में बिहारी मजदूर नौ साल बाद बरी,विवेचक की लचर तफ्तीश के चलते कोर्ट ने दिया सन्देह का लाभ

*प्लाई वुड फैक्ट्री के मुंशी की हत्या के केस में बिहारी मजदूर नौ साल बाद बरी,विवेचक की लचर तफ्तीश के चलते कोर्ट ने दिया सन्देह का लाभ*

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*उतुरी स्थित फैक्ट्री में मुंशी पारसनाथ सिंह की धारदार हथियार से हुई थी हत्या,भतीजे ने बकाया मजदूरी के लेन-देन का विवाद बताकर पंकज सिंह,प्रदीप सिंह व सरदार जनक सिंह पर दर्ज कराया था हत्या का मुकदमा*

*कोतवाली देहात के तत्कालीन थानाध्यक्ष ने तीनों आरोपियों की नामजदगी गलत बताते हुए फैक्ट्री के मजदूर रूहुल का नाम प्रकाश में लाकर बना दिया था आरोपी,कोर्ट ने सतही विवेचना पर की टिप्पणी*

*पुलिस की सतही तफ्तीश की वजह से नौ वर्षो से निर्दोष मजदूर को सलाखों के पीछे बितानी पड़ी जिंदगी,अब जाकर कोर्ट का निर्णय आने पर हुआ बरी*

*रिपोर्ट-अंकुश यादव*
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सुलतानपुर। नौ साल पहले प्लाईवुड फैक्ट्री के मुंशी की धारदार हथियार से हुई हत्या के मामले में विवेचक की लचर तफ्तीश के चलते अभियोजन कहानी कोर्ट में साबित नहीं हो सकी। नतीजतन अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम इंतखाब आलम की अदालत ने बिहार जिले के आरोपी बनाए गए मजदूर रूहुल को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त करार दिया है। जिससे बचाव पक्ष को बड़ी राहत मिली है और वहीं अभियोजन पक्ष की कहानी तैयार करने वाले तत्कालीन थानाध्यक्ष की विवेचना पर सवाल खड़ा हो गया है।
मामला कोतवाली देहात थाना क्षेत्र अंतर्गत उतुरी ग्राम स्थित प्लाईवुड फैक्ट्री से जुड़ा है। जहां पर हुई घटना का जिक्र करते हुए अभियोगी संतोष सिंह निवासी महमूदपुर थाना गोसाईगंज ने कोतवाली देहात थाने में मुकदमा दर्ज कराया। आरोप के मुताबिक उसके चाचा पारसनाथ सिंह उतुरी स्थित पंकज सिंह की प्लाईवुड फैक्ट्री में मुंशी के पद पर काम करते थे। आरोप के मुताबिक घटना के करीब दो वर्ष पहले से प्लाईवुड फैक्ट्री के मालिकों ने उसके चाचा का वेतन रोक लिया था और मांगने पर बार-बार टालमटोल कर रहे थे। अभियोगी के मुताबिक 19 जुलाई 2013 को उसके चाचा ने फोन पर बताया था कि इसी मजदूरी के लेन-देन के विवाद को लेकर पंकज सिंह,प्रदीप सिंह व सरदार जनक सिंह फैक्ट्री पर आये और धमकी दिये थे कि होश में रहो नहीं तो नतीजा ठीक नहीं होगा। इसी रात तीनों लोगों के जरिए मुंशी पारसनाथ सिंह की हत्या कर देने के आरोप में नामजद मुकदमा दर्ज कराया। मामले में संतोष सिंह की तहरीर पर आरोपियों के खिलाफ नामजद मुकदमा तो दर्ज हुआ लेकिन तफ्तीश के दौरान विवेचक ने तीनों आरोपियों की नामजदगी गलत बताते हुए फैक्ट्री में काम करने वाले बिहार जिले के काम करने वाले मजदूर रूहुल हक हो आरोपी बनाते हुए जेल भेजने की कार्रवाई की। विवेचक ने आरोपी के कब्जे से बस कुछ ही घंटों में आलाकत्ल कुल्हाड़ी भी बरामद बता दिया था और नक्शा नजरी मे भी खेल कर दिया था। फिलहाल विवेचक के जरिए प्रेषित आरोप-पत्र के आधार पर आरोपी रुहुल के खिलाफ विचारण चला। इस दौरान अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम की अदालत में अभियोजन पक्ष ने पुलिस के जरिए तैयार किए गए साक्ष्य को साबित करने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन विवेचक की लचर तफ्तीश के चलते घटना की कड़ी से कड़ी जुड़ नहीं सकी और संदिग्ध कहानी के संदेह का लाभ आरोपी को मिला। मामले में बचाव पक्ष के अधिवक्ता प्रकाश चंद्र उपाध्याय व दिवाकर शुक्ला ने अपने साक्ष्यो एवं तर्को को प्रस्तुत करते हुए आरोपी रूहुल को बेकसूर बताया और पुलिस के जरिए सही मुल्जिमो के बजाय उनके निर्दोष मुवक्किल को फर्जी तरीके से अभियुक्त बनाने का तर्क पेश किया। उभय पक्षो को सुनने के पश्चात सत्र न्यायाधीश इंतखाब आलम ने पुलिस की लचर कहानी व अभियोजन के जरिए पेश साक्ष्यो को विश्वसनीय न मानते हुए आरोपी राहुल को संदेह का लाभ देकर उसे दोषमुक्त करार दिया है। फिलहाल इस मामले में नौ वर्षों से आरोपी रूहुल जेल की सलाखों के पीछे रहा और निर्दोष होने के बावजूद जेल काटता रहा।अभियोजन कहानी साबित न होने के चलते नौ वर्षों बाद उसे न्याय मिल सका। निर्दोष साबित हुए रूहुल के पिता ने न्यायपालिका पर भरोसा जताते हुए कहा कि उसके बेटे के साथ पुलिस ने मात्र मजदूर होने के नाते अन्याय किया था लेकिन कोर्ट ने न्याय किया।

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