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आचार्य, विद्यार्थी को ज्ञान परायण और ज्ञान सेवा परायण होना चाहिए।: बांके बिहारी , सुलतानपुर में दस दिवसीय प्रान्तीय नवचयनित आचार्य प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रधानाचार्य ने दिये उत्तम शिक्षण के टिप्स।

आचार्य, विद्यार्थी को ज्ञान परायण और ज्ञान सेवा परायण होना चाहिए।: बांके बिहारी
ऽ सुलतानपुर में दस दिवसीय प्रान्तीय नवचयनित आचार्य प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रधानाचार्य ने दिये उत्तम शिक्षण के टिप्स।

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सुलतानपुर। रानी रेवती देवी सरस्वती विद्या निकेतन राजापुर, प्रयाग के प्रधानाचार्य बांके बिहारी पाण्डेय ने आज यहॉ जब शिक्षक आत्मा का दान करता है तब विद्यार्थी बनता है। विद्यार्थी शिक्षक का मानसपुत्र है। विद्यार्थी आचार्य परायण, आचार्य विद्यार्थी परायण और दोनों ज्ञान परायण और ज्ञान सेवा परायण होना चाहिए। ज्ञान की पवित्रतम धारा को प्रवाहित करने के लिए हमें त्याग करना पडे़गा।

सरस्वती विद्या मन्दिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय विवेकानन्दनगर में चल रहे दस दिवसीय प्रान्तीय नवचयनित आचार्य प्रशिक्षण कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए श्री पाण्डेय ने शिक्षा के मनोवैज्ञानिक आधार ज्ञानार्जन प्रक्रिया विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ज्ञानार्जन प्रक्रिया में मनोविज्ञान अन्तःकरण से सम्बन्धित है। मनोविज्ञान अन्तःकरण का विज्ञान है। मन चंचल है। इस चंचल मन को शान्त करके ही ज्ञानार्जन प्रक्रिया सम्पन्न की जा सकेगी। हम सभी शिक्षा क्षेत्र में कार्य करने वाले लोग हैं इसलिए हमें अपने छात्रों की जिज्ञासा समाधार का पूरा प्रयत्न करना चाहिए। हमें मन की गति को भी शान्त करने का स्वभाव बनाना पड़ेगा। मन आसक्त हो जाता है। मोबाइल द्वारा शिक्षण प्रारम्भ होने के कारण छात्रों में मोबाइल के प्रति आषक्ति बढ़ गयी। छात्रों का कक्षा में उपस्थिति कम होती है। योग शास्त्र की शिक्षा का उद्देश्य छात्रों के मन को शान्त एवं एकाग्र करना है। बुद्धि- बुद्धि जानती, समझती, तुलना संस्लेश, विश्लेशण करती है। जब तक छात्र शिक्षक परायण नहीं होंगे। तब तक शिक्षण प्रक्रिया नहीं सम्पन्न हो सकेगी। बुद्धि के द्वारा प्रश्न, प्रश्नों द्वारा समाधान मिल सकेगा। कभी-कभी पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए शिक्षक उतना ज्ञान उडेल देता है कि छात्र की बुद्धि के छोटा होने के कारण ज्ञान विखर जाता है। जब बुद्धि स्थिर रहेगी तभी कार्य सम्पन्न होगा। सीखने के लिए दोनों को एक साथ रहना होगा। कोई ज्ञान मन के माध्यम से चित्त तक पहुॅंचा दिया जाय तो ज्ञानार्जन प्रक्रिया सम्पन्न हो सकेगी। बालक की बुद्धि का स्तर हमसे अधिक होता है। वे हमारी नकल तेजी से करने लगते हैं। जब-जब संक्रान्ति हुई तो इस स्थिति में श्रेष्ठ शिक्षक की भूमिका बढ़ जाती है। विद्यार्थी की धारण क्षमता बढ़ें, ऐसा हमार प्रयास हो। धारण क्षमता यदि कमजोर हुई तो अधिगम की प्रक्रिया पूरी नहीं होगी। शिक्षक का दायित्व बहुत बड़ा है। ‘‘कपिलदेव के पिता से उनके गुरू ने मांग लिया। जो क्रिकेट के श्रेष्ठ खिलाड़ी बने। जब शिक्षक आत्मा का दान करता है तब विद्यार्थी बनता है।

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