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तो यहां सीओ सपा समर्थित प्रधान के प्रभाव में नहीं ले रहे एक्शन और सरकार पर उठ रहा सवाल।पांच माह पूर्व बीएसएफ जवान पर प्रधान व अन्य ने किया था जानलेवा हमला,सपा समर्थित आरोपी प्रधान की पैरवी पर मुल्जिमो को संरक्षण देने का सीओ गौरीगंज पर आरोप।मेडिकल में भी पीएचसी पर डॉक्टर ने किया था खेल,सीएमओ के आदेश पर हुए पुनः मेडिकल में मिली गम्भीर चोटें।गम्भीर है चोटें, फिर भी आरोपियों पर नहीं हुई अब तक कार्यवाही,सीओ की मनमानी कार्यशैली से व्यवस्था पर उठा सवाल

*..तो यहां सीओ सपा समर्थित प्रधान के प्रभाव में नहीं ले रहे एक्शन और सरकार पर उठ रहा सवाल*

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*पांच माह पूर्व बीएसएफ जवान पर प्रधान व अन्य ने किया था जानलेवा हमला,सपा समर्थित आरोपी प्रधान की पैरवी पर मुल्जिमो को संरक्षण देने का सीओ गौरीगंज पर आरोप*

*मेडिकल में भी पीएचसी पर डॉक्टर ने किया था खेल,सीएमओ के आदेश पर हुए पुनः मेडिकल में मिली गम्भीर चोटें*

*गम्भीर है चोटें, फिर भी आरोपियों पर नहीं हुई अब तक कार्यवाही,सीओ की मनमानी कार्यशैली से व्यवस्था पर उठा सवाल*

*रिपोर्ट-अंकुश यादव*
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गौरीगंज-अमेठी। बीएसएफ जवान पर पांच माह पूर्व हुए जानलेवा हमले के मामले में सीओ गौरीगंज के जरिये सपा समर्थित आरोपी प्रधान के प्रभाव में उसे एवं अन्य अभियुक्तों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई न कर कागजी खेल करते हुए संरक्षण देने का मामला सामने आया है। ऐसे में सूबे में भाजपा की सरकार होते हुए भी सपा नेता का दबाव हावी होता दिख रहा है, जिससे मौजूदा सरकार की मंशा एवं कानून व्यवस्था पर पानी फिरता नजर आ रहा है। माना जा रहा है कि ऐसे ही अधिकारियों की मनमानी कार्यशैली की वजह से आए दिन समाज में अपराध बढ़ रहा है और क्राइम कंट्रोल न होने की वजह से सरकार की किरकिरी हो रही है।
मालूम हो कि देश व देशवासियों की सुरक्षा के लिए जान की बाजी लगाकर कश्मीर में ड्यूटी करने वाला बीएसएफ जवान देवनाथ निवासी सकरावा-गौरीगंज बीते जून माह में अवकाश पर आया था। आरोप है कि पांच जून की सुबह गांव के ही प्रधान हरिराम चौहान ,धीरेंद्र,सुरेंद्र, गजेंद्र ,वीरेंद्र ,रामकरन, राजेंद्र, अमरनाथ व अन्य ने एक राय होकर जमीनी विवाद की रंजिश में बीएसएफ जवान देवनाथ पर लाठी-डंडे व कुल्हाड़ी से जानलेवा हमला कर दिया। आरोपियों ने बीएसएफ जवान को अकेला पाकर जमकर मारा पीटा,जिससे उसे गंभीर चोटें आई। इलाज व मेडिकल परीक्षण के लिए बीएसएफ जवान को सर्वप्रथम स्थानीय पीएचसी पर ले जाया गया, जहां पर मौजूद चिकित्सक ने आरोपियों के प्रभाव में बीएसएफ जवान को आई चोटे गम्भीर होने के बावजूद मामले को हल्का दिखाने के चक्कर मे मामूली बताया और मामले को गंभीरता से नहीं लिया। फिलहाल बीएसएफ जवान ने मौजूद चिकित्सा कर्मी की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए सीएमओ से बोर्ड बैठाकर पुनः मेडिकल परीक्षण कराने की मांग की। जिसके बाद सीएमओ के आदेश पर बीएसएफ जवान का पुनः मेडिकल हुआ और उसमें गंभीर चोटें भी मिली। बीएसएफ जवान के बयान के मुताबिक उसे आई चोटों का ऑपरेशन भी करना पड़ा, ऑपरेशन करते समय उसके सिर में बांस के फज्जे भी मिले,जिसे आप वीडियो में देख सकते है। इस घटना के संबंध में बीएसएफ जवान ने पुलिस को सूचना दी, लेकिन पुलिस ने मामूली धाराओं में मुकदमा दर्ज कर मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की बात कही, लेकिन करीब पांच माह बीत जाने के बाद भी आज तक प्रधान हरिराम चौहान एवं अन्य के प्रभाव में कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। मिली जानकारी के मुताबिक प्रकरण में एससी एसटी एक्ट की धारा बढ़ोतरी भी की गई है, लेकिन आई चोटों के हिसाब से आरोपियों पर धारा नहीं लगाई गई है। प्रकरण की तफ्तीश क्षेत्राधिकारी गौरीगंज को मिली है जिनके जरिए अभी तक आरोपियों के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की जा सकी है। देश के जवान का आरोप है कि प्रधान हरिराम सपा पार्टी समर्थित है जिसके प्रभाव में क्षेत्राधिकारी गौरीगंज विवेचना कर रहे हैं और उसके अनुचित प्रभाव व अन्य किसी लाभ की वजह से जानबूझकर कार्रवाई से परहेज रखे हुए हैं। नतीजा यह है कि देश की सुरक्षा के लिए लड़ने वाले जवान को ही यूपी पुलिस की लापरवाही की वजह से न्याय नहीं मिल रहा है और उसे दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है। देश के जवान ने बताया कि इस मामले में कार्रवाई की मांग को लेकर उसने पुलिस अधीक्षक अमेठी से भी मुलाकात की थी, जिन्होंने विवेचनाधिकारी सीओ को धारा बढ़ोतरी कर उचित कार्रवाई के लिए निर्देशित किया था, लेकिन कई दिन बीत जाने के उपरांत भी अभी तक सीओ के जरिए कोई रुचि विवेचना में नहीं दिखाई गई। नतीजा यह है कि आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि सपा समर्थित प्रधान या प्रभावशालियो के दबाव में पुलिस ऐसे ही कार्रवाई करेगी तो समाज में आए दिन बढ़ रहे अपराध का जिम्मेदार आखिर कौन होगा। शायद इसी का नतीजा है कि जिम्मेदार अफसरों की लापरवाही की वजह से मौजूदा सरकार को खरी-खोटी सुननी पड़ती है और नाराज जनता भी रूठ कर अन्य किसी का नेतृत्व पाने की चाह रखने लगती है। ऐसे में सरकार को भी ध्यान देना जरूरी है कि उनकी मंशा एवं नियम-कानून को ताक पर रखकर गैरजिम्मेदाराना कार्य करने वाले अफसरों को अपनी करनी का परिणाम मिलना चाहिए। ऐसे में प्रभावशालियो के ईशारे पर काम करने वाले अफसरों की इस कार्यशैली से आखिर कब बीएसएफ जवान को न्याय मिलेगा ,यह अहम सवाल है ?

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